यहां पाएं गर्भावस्था के आख़िरी दिनों में रक्तस्राव के बारे में हर जानकारी

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 प्रसवपूर्व रक्तस्राव (एपीएच) को शून्य से चौबीस सप्ताह की गर्भावस्था और बच्चे के जन्म पूर्व होने वाले जननांग मार्ग के रक्तस्राव के रूप में परिभाषित किया गया है। एपीएच गर्भधारण की तीन से पांच प्रतिशत जटिलताएं उत्पन्न करता है; तथा दुनिया भर में प्रसवकालीन और मातृ मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण है। 

एपीएच के कारणों में प्लेसेंटा प्रिविया, प्लासेंटल ऐबरप्शन और अन्य कारण (जैसे कि योनिमुख, योनि या गर्भाशय ग्रीवा से रक्तस्राव) शामिल है। एपीएच का पचास प्रतिशत कारण प्लेसेंटा प्रिविआ और प्लेसेंटल ऐबरप्शन है।

 

लक्षण

 

प्रसवपूर्व रक्तस्राव के लक्षणों में गर्भावस्था के आख़िर दिनों और प्रसव से पहले योनि से रक्तस्राव होना है। योनि रक्तस्राव के साथ अन्य लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं-

 

(क) प्लेसेंटा प्रिविआ (पुरःस्था या सन्मुखी अपरा) के कारण एपीएच में, योनि से रक्तस्राव दर्द रहित होता है या संभोग के बाद रक्तस्राव होता है।

 

प्रारंभिक प्रकरण आमतौर पर हल्का होता हैं तथा केवल स्वयं रूककर दोबारा हो जाता है। कुछ प्रकार का प्लेसेंटा प्रिविआ (पुरःस्था या सन्मुखी अपरा), गर्भावस्था के बत्तीस से पैंतीस सप्ताह तक अपने आप ठीक हो जाता है क्योंकि गर्भाशय का निचला हिस्सा खिंचता है और पतला हो जाता है। तब प्रसवकाल और प्रसव सामान्य होता है। यदि प्लेसेंटा प्रिविया ठीक नहीं होता है, तो शल्य क्रिया द्वारा प्रसव (सिजेरियन) की आवश्यकता हो सकती है।

 

(ख) प्लासेंटल ऐबरप्शन के कारण एपीएच में निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं:

 

  • योनि से खून बहना।
  • पेट में दर्द।
  • पीठ दर्द।
  • गर्भाशय में पीड़ा 
  • गर्भाशय संकुचन
  • गर्भाशय या पेट में सख्तपन।

 

कारण

 

एपीएच के कारणों में प्लेसेंटा प्रिविया, प्लासेंटल ऐबरप्शन/प्लेसेंटल ऐबरप्शन और अन्य कारण (जैसे कि योनिमुख, योनि या गर्भाशय ग्रीवा से रक्तस्राव) शामिल हैं। ऐबरप्शन के गर्भावस्था के दौरान होने वाली स्थितियों से संबंधित होने की संभावना अधिक होती है तथा प्लेसेंटा प्रिविया की गर्भावस्था पूर्व उपस्थित स्थितियों से संबंधित होने की अधिक संभावना होती है। 

 

प्लेसेंटा प्रिविया को गर्भनाल या प्लेसेंटा के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो कि पूर्णत: या आंशिक रूप से गर्भाशय के निचले क्षेत्र से जुड़ी होती है। यह स्थिति गर्भावस्था के चार से आठ प्रतिशत में होती है। स्थितियों का पता ज़्यादातर अल्ट्रासाउंड परीक्षण से लगाया जाता है।

 

प्लेसेंटा प्रिविया (विलियम्स) का वर्गीकरण

 

पूर्ण प्लेसेंटा प्रिविया: इसमें आंतरिक ग्रीवा ओएस को खोलने वाला हिस्सा या कहें गर्भाशय का मुंह पूरी तरह नाल द्वारा ढ़क लिया जाता है।  

 

आंशिक प्लेसेंटा प्रिविया:  इसमें आंतरिक ग्रीवा को खोलने वाला हिस्सा नाल द्वारा आंशिक रूप से ढ़क लिया जाता है।

 

मार्जनल प्लेसेंटा प्रिविया: प्लेसेंटा प्रिविया में प्लेसेंटा गर्भाशय में नीचे की ओर विकसित हो जाता है, जिसमें प्लेसेंटा गर्भाशय ग्रीवा को कवर नहीं करता है, लेकिन यह गर्भाशय ग्रीवा के निकट स्थित होता है।

 

प्लेसेंटा प्रिविया के विकास से जुड़े कारकों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • बच्चों के जन्म की संख्या में वृद्धि।
  • मां बनने की उम्र में बढ़ोत्तरी।
  • प्लेसेंटा के आकार (कई गर्भावस्था) में वृद्धि।
  • गर्भाशय परत (एंडोमेट्रियल) की क्षति (पिछले डाइलेशन और क्यूरेटेज), एंडोमेट्रैटिस/अन्तर्गर्भाशय अस्थानता (जिसमें गर्भाशय के अंदर पाया जाने वाला एक ऊतक बढ़कर गर्भाशय के बाहर फैलने लगता है)।
  • सिज़ेरियन सेक्शन (पूर्व शल्य प्रसव परिच्छेद), गर्भाशय में निशान की उपस्थिति और विकृति
  • पूर्व मायोमेक्टॉमी।
  • प्लेसेंटल असमान्यताएं।
  • पूर्वं प्लेसेंटा प्रिविया और।
  • धूम्रपान करना। 

प्लासेंटल ऐबरप्शन या प्लेसेंटल ऐबरप्शन/ऐबरप्शिओ प्लेसेंटे- प्लेसेंटल ऐबरप्शन गर्भाशय की दीवार से सामान्यत: स्थित प्लेसेंटा का समयपूर्व अलग होना है, जिसके परिणामस्वरूप शिशु के जन्म (प्रसव) से पूर्व रक्तस्राव होता है। प्लेसेंटल ऐबरप्शन में कुछ रक्तस्राव गर्भाशय ग्रीवा के माध्यम से निकल जाता है , जिसके कारण बाहरी रक्तस्राव होता है तथा जब रक्त बाहर नहीं निकलता है तब कभी-कभी रक्तस्राव दिखता नहीं है। प्लेसेंटल ऐबरप्शन पांच प्रतिशत तक गर्भावस्था में हो सकता है।

 

ऐबरप्शन होने का सटीक कारण अज्ञात है, लेकिन प्लेसेंटल ऐबरप्शन के ज़ोखिम के कारकों में प्री-एक्लेमप्सिया (प्रसवाक्षेप रोग), भ्रूण के विकास में बाधा, नॉन वर्टिक्स प्रेजेंटेशन (जन्म के दौरान एक महिला की योनि के माध्यम से बच्चे का सिर नीचे नहीं आता है), माँ बनने की उम्र में वृद्धि, अन्य सहभागिता, निम्न बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई), सहायक प्रजनन तकनीक की सहायता से गर्भधारण, गर्भावस्था के दौरान अंत:गर्भाशयी/अंतर्गर्भाशयी संक्रमण, झिल्ली का समय से पहले टूटना, पेट में आघात (घरेलू हिंसा के परिणामस्वरूप और आकस्मिक), धूम्रपान, मादक पदार्थों का उपयोग (कोकीन और एम्फ़ैटेमिन) और मातृ थ्रॉम्बोफिलिया शामिल हैं। पहली तिमाही में होने वाला रक्तस्राव भी गर्भावस्था के आख़िरी दिनों में ऐबरप्शन के ज़ोखिम को बढ़ाता है।

 

प्लासेंटल ऐबरप्शन का निदान अधिकांशत: अल्ट्रासाउंड परीक्षण से किया जाता है। हालांकि सोनोग्राफी प्लेसेंटल ऐबरप्शन का पता लगाने के लिए संवेदनशील नहीं है लेकिन यह बेहद विशिष्ट है।

 

प्लेसेंटा एक्रीटा- जब प्लेसेंटा गर्भाशय की दीवार (या प्लेसेंटा का भाग)  में गहराई तक प्रत्यारोपित हो जाती है तब समस्या उत्पन्न होती है, तो इसे प्लेसेंटा एक्रीटा कहा जाता है। 

यह तीसरी तिमाही के दौरान रक्तस्राव और प्रसव के दौरान गंभीर रक्तस्राव का कारण है।

 

 

अन्य कारण- गर्भाशय ग्रीवा, आघात, योनिमुख वैरिकोसाइटिस  (योनिमुख-महिला जननांग की बाहरी सतह पर वैरिकोज वेंस) जननांग ट्यूमर, जननांग संक्रमण और वासा प्रीविया के कुछ मामले एपीएच का कारण हो सकते है। इनमें से कई स्थितियां प्रारंभिक स्पेक्युलम परीक्षण में प्रकट हो जाती है। 

 

 

निदान

 

प्रसवपूर्व रक्तस्राव का निदान सर्वप्रथम प्रयोगशाला परीक्षण पर आधारित है। मातृ या भ्रूण ज़ोखिम प्रबंधन में आवश्यक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप स्थापित करने के लिए एपीएच से पीड़ित महिलाओं का प्रारंभिक प्रयोगशाला मूल्यांकन चिकित्सक द्वारा किया जाता है। 

 

यदि कोई मातृ जोखिम नहीं है, तो एक पूरा ब्यौरा लिया जाना चाहिए। इसमें सह-लक्षण जैसे कि दर्द, योनि से रक्तस्राव की अधिकता का आकलन, मातृ हृदय स्थिति और भ्रूण स्वास्थ्य मूल्यांकन का निर्धारण करने वाला ब्यौरा शामिल है।

 

प्लेसेंटा प्रिविया में, गर्भाशय छुने और पीड़ा के बिना शिथिल महसूस होगा। सामान्यत: जन्म के समय पहले आने वाला भाग ऊपर और हिलता हुआ महसूस होगा।

 

प्लासेंटल ऐबरप्शन में, अचानक पेट में दर्द की शुरुआत, योनि से रक्तस्राव, कड़कपन और पीड़ा गर्भाशय के तीन मुख्य नैदानिक मानदंडों का गठन होता है।

 

स्पेक्युलम परीक्षण- स्पेक्युलम परीक्षण ग्रीवा फैलाव की पहचान या एपीएच का कारण जानने के लिए निचले जननांग पथ देखने के लिए उपयोगी है।

 

यदि प्लेसेंटा प्रिविया का संभावित पता चल जाता है, (उदाहरण के लिए, पिछला स्कैन निम्न प्लेसेंटा दिखाता है या पेट के परीक्षण में उच्च भाग दिखता है या रक्तस्राव दर्द रहित होता है), डिजिटल योनि परीक्षण तब तक नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि अल्ट्रासाउंड प्लेसेंटा प्रिविया नहीं दर्शाता है।

 

यदि एपीएच दर्द या गर्भाशय गतिविधि से जुड़ा है, तो डिजिटल योनि परीक्षण गर्भाशय ग्रीवा के फैलाव के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है।

 

रक्त परीक्षण-

  • हीमोग्लोबिन आकलन के साथ पूर्ण रक्त गणना।
  • आरएच कारक के साथ रक्त समूहीकरण।
  • थक्का/जमावट (कोऐग्यलेशन) कारक के लिए परीक्षण।
  • यकृत प्रणाली परीक्षण।
  • यूरिया और इलेक्ट्रोलाइट परीक्षण।

अल्ट्रासाउंड स्कैन (यूएसजी) –

 

यदि प्लेसेंटल साइट की जानकारी पहले से ज्ञात नहीं है, तो एपीएच से पीड़ित महिलाओं में प्लेसेंटा प्रिविया की पुष्टि या प्लेसेंटा प्रिविया है या नहीं हैं, यह निश्चित करने के लिए अल्ट्रासाउंड स्कैन किया जाना चाहिए। प्लेसेंटा प्रिविया का निदान करने में ट्रांसवेजाइनल स्कैन (टीवीएस) ट्रांसएब्डोमिनल की तुलना में अधिक सटीक है।

 

रेट्रोप्लेसेंटल क्लॉट (ऐबरप्शन) का पता लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड की संवेदनशीलता सही नहीं है। हालांकि, जब अल्ट्रासाउंड ऐबरप्शन का संकेत देता है तब संभावना है कि ऐबरप्शन अधिक हों। 

 

रंग डॉपलर (जो कि नसों के माध्यम से बहता हुआ रक्त दिखा सकता है) के संयोजन में ट्रांसवेजिनल अल्ट्रासाउंड (गर्भाशय ग्रीवा का अल्ट्रासाउंड दृश्य) गर्भावस्था के दौरान वासा प्रीविया के निदान में सबसे अधिक प्रभावी उपकरण है तथा इसका उपयोग ज़ोखिम से पीड़ित रोगियों में किया जा सकता है।

 

एमआरआई का उपयोग केवल मायोमेट्रियल इन्वेशन (गर्भाशय ग्रीवा में विस्तार) के विभिन्न स्तरों का अंतर जानने के लिए किया जाता है।

 

 

प्रबंधन

 

एपीएच का प्रबंधन विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है। ये एपीएच के कारण और मात्रा, मातृ एवं भ्रूण की स्थिति, गर्भावस्था अवधि तथा संबंधित जटिलता की उपस्थिति पर निर्भर है।

 

एपीएच से पीड़ित प्रत्येक गर्भवती महिला का आकलन व्यक्तिगत आधार पर किया जाता है तथा उसी के अनुसार नैदानिक निर्णय लिया जाता है।

 

क) इसमें सामान्य उपाय (रक्तस्राव से पीड़ित सभी रोगियों के लिए सामान्यत:) शामिल हैं।

 

ख) विशिष्ट उपाय: तत्काल प्रसव या आशान्वित और जटिलताओं का प्रबंधन।

 

मातृ या भ्रूण के ज़ोखिम से जुड़ा एपीएच प्रसूति संबंधी आपातकाल है। प्रबंधन में भ्रूण पुनर्जीवन और भ्रूण प्रसव शामिल है। पर्याप्त संसाधनों के साथ उपयुक्त अस्पताल में प्रसव की योजना बनाई जानी चाहिए।

 

जब मां स्थिर होती है, भ्रूण अपरिपक्व (<37 सप्ताह) होता है तब आशान्वित प्रबंधन को महत्व दिया जा सकता है। उद्देश्य भ्रूण की परिपक्वता और उत्तरजीविता में सुधार की उम्मीद के साथ गर्भावस्था को बढ़ाना है।

 

एंटी-डी आईजी प्रोफिलैक्सिस उन महिलाओं को दिया जा सकता है, जिनका आरएच नकारात्मक हैं।

 

 

जटिलताएं

 

एपीएच मां और भ्रूण की जटिलताओं से जुड़ा है। जटिलताओं की संभावना निम्नलिखित स्थितियों में अधिक होती है:

  • जब रक्तस्राव प्लासेंटल (ऐबरप्शन या प्लेसेंटा प्रिविया) के कारण होता है।
  • जब रक्तस्राव अत्यधिक होता है और। 
  • जब रक्तस्राव प्रारंभिक गर्भावस्था में होता है।

माँ में एपीएच निम्नलिखित उत्पन्न कर सकता हैं:

  • एनीमिया। 
  • संक्रमण।
  • रक्त की कमी के कारण मातृ आघात।
  • रक्त की महत्वपूर्ण कमी के परिणामस्वरूप गुर्दे या अन्य अंगों की विफलता।
  • रक्त का थक्का जमने की समस्या (फैला इंट्रावस्कुलर थक्का/जमावट-डीआईसी)।
  • खून चढ़ाने (रक्ताधान) की आवश्यकता।
  • प्रसवोत्तर रक्तस्राव।
  • लंबे समय तक अस्पताल में रहना।
  • मनोवैज्ञानिक अनुक्रम।
  • काउवलेरी गर्भाशय- ये प्लासेंटल ऐबरप्शन के बाद होता है। यह एक ऐसी घटना है, जिसमें रेट्रोप्लेसेंटल रक्त गर्भाशय की दीवार की मोटाई के माध्यम से पेरिटोनियमी गुहा में प्रवेश करता है।
  • बेहद कम, जब गर्भाशय रक्तस्राव को नियंत्रित नहीं किया जाता है, तब हिस्टेरेक्टोमी/ हिस्टेरेक्टॉमी की आवश्यक हो सकती है।
  • बच्चे में एपीएच निम्नलिखित उत्पन्न कर सकता है:
  • पर्याप्त पोषक तत्व न मिलने से प्रतिबंधित विकास।
  • गर्भ अल्पआक्सीयता/भ्रूण हाइपोक्सिया (पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती है)।
  • समय से पहले जन्म। 
  • मृत-प्रसव।

 

 

रोकथाम

 

उच्च रक्तचाप/प्री-एक्लेमप्सिया जैसी स्थितियों के उचित प्रबंधन हेतु गर्भावस्था के दौरान किसी भी जटिलता का पता लगाने के लिए नियमित प्रसवपूर्व जांच करना आवश्यक है। यह मातृ और भ्रूण जटिलताओं को कम करने में मदद करता है।

 

गर्भावस्था के दौरान कुछ ज़ोखिमपूर्ण कारकों जैसे कि धूम्रपान, मादक पदार्थों के दुरुपयोग को रोककर एपीएच की संभावनाओं को भी कम किया जा सकता है।

 

गर्भवती महिलाओं को मोटर वाहन में सीटबेल्ट पहननी चाहिए तथा स्वत: दुर्घटना, गिरने या अन्य चोट से पेट आघात की स्थिति में तुरंत चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए।

 

(नेशनल हेल्‍थ पोर्टल से साभार)

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